दहेज समाज को खोखला कर रहा है।
बेटी का बाप कहता है जमाने से....
बेटी कोई बेचे यहाँ तो पापी वो कहलाता है ,
और बेटा बेचने वालों को बादशाह बना दिया जाता है ॥
वो सीना ठोक कर चलते हैं , हम शीश झुकाए फिरते हैं ,
दूल्हा खरीदने वाले का ही पगड़ी क्यूँ कदमो में गिरती हैं ॥
बेटी कहती अपने पिता से ...
हम भारत की बेटी हैं इसका गर्व करें या करें शरम ,
गर बेटी बेचना है अधर्म तो बेटा बेचने का क्या है धरम ॥
पापा ऐसा दूल्हा खरीदना जो सस्ता और टिकाऊ हो ,
महलों वाला ना सही पर मेहनतकश कमाऊ हो ॥
देखोगे गर सपना महलों का तो अपनी झोपड़ी बिक जाएगी ,
चंद रूपयों में ही पापा उसकी औकात दिख जाएगी ॥
क्यूँ ना एक ऐसा सिस्टम बना दी जाए ,
दूल्हे की आधी कमाई बेटी के बाप को भी दी जाये ॥
बेटी कहती दूल्हे से ...
किस बात का घमंड है तुम्हे , किस बात की शान दिखाते हो ॥
चंद रूपयों में ही तुम यूँ सरेआम बिक जाते हो ॥
मेरे बाप के पैसों से ही तमाम शौक मिटाते हो ,
पहन कर खैरात की शेरवानी पूरी बारात को नचाते हो ,
होगे तुम राजकुमार अपने माँ के तो , मैं भी एक राजकुमारी हूँ ,
भले बिक जाते हैं घर द्वार दहेज में पर तुझसा ना भिखारी हूँ ॥
चुप रह कर सब सह जाती हूँ , तेरे हर नखरे पर जान लुटाती हूँ ,
तुम समझते हो कि जैसे मेरे दिल में कोई बात नहीं ,
अरे दहेज लोभी सुन मुझसे तुम टक्कर ले सको ऐसी तेरी औकात नहीं ।
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
बेटी का बाप कहता है जमाने से....
बेटी कोई बेचे यहाँ तो पापी वो कहलाता है ,
और बेटा बेचने वालों को बादशाह बना दिया जाता है ॥
वो सीना ठोक कर चलते हैं , हम शीश झुकाए फिरते हैं ,
दूल्हा खरीदने वाले का ही पगड़ी क्यूँ कदमो में गिरती हैं ॥
बेटी कहती अपने पिता से ...
हम भारत की बेटी हैं इसका गर्व करें या करें शरम ,
गर बेटी बेचना है अधर्म तो बेटा बेचने का क्या है धरम ॥
पापा ऐसा दूल्हा खरीदना जो सस्ता और टिकाऊ हो ,
महलों वाला ना सही पर मेहनतकश कमाऊ हो ॥
देखोगे गर सपना महलों का तो अपनी झोपड़ी बिक जाएगी ,
चंद रूपयों में ही पापा उसकी औकात दिख जाएगी ॥
क्यूँ ना एक ऐसा सिस्टम बना दी जाए ,
दूल्हे की आधी कमाई बेटी के बाप को भी दी जाये ॥
बेटी कहती दूल्हे से ...
किस बात का घमंड है तुम्हे , किस बात की शान दिखाते हो ॥
चंद रूपयों में ही तुम यूँ सरेआम बिक जाते हो ॥
मेरे बाप के पैसों से ही तमाम शौक मिटाते हो ,
पहन कर खैरात की शेरवानी पूरी बारात को नचाते हो ,
होगे तुम राजकुमार अपने माँ के तो , मैं भी एक राजकुमारी हूँ ,
भले बिक जाते हैं घर द्वार दहेज में पर तुझसा ना भिखारी हूँ ॥
चुप रह कर सब सह जाती हूँ , तेरे हर नखरे पर जान लुटाती हूँ ,
तुम समझते हो कि जैसे मेरे दिल में कोई बात नहीं ,
अरे दहेज लोभी सुन मुझसे तुम टक्कर ले सको ऐसी तेरी औकात नहीं ।
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

Good
ReplyDelete